मेरे बचपन ने आज आखिर पलट के सवाल पूछ ही लिया
क्या पाया ऐसा तूने जो मुझे ठीक से अलविदा भी न कह पाया
चंद सिक्खे थे जेब में , खनक उनकी महसूस करता था
अब जेब नोटों से भरी है , लेकिन खनक को तूने खो दिया
गर लगे कभी लोट कर आना है, गुजरा हुआ बचपन फिर से ढूंढना है
तो मैं उसी मोड पे आज भी खड़ा हूँ , तेरे सपनो के कब्र पर मैं आज हर रोज़ फूल चढ़ाता हूँ
Onkar