Tuesday, September 14, 2021

 रीश्तो कि सीलवटो को मैने युन हि मिटते देखा है 

हां साहब मैने परिवार को तुटते हुए देखा है  


कुछ सपनो को बिखरते हुए देखा है ।

कुछ अपनो को रुठते हुए देखा है ।

हां साहब मैने परिवार तुटते हुए देखा है ।  


कुछ बडे ख्वाब तो नाही थे , एक छत चार दिवारी । 

और कूछ बातें प्यारी ।

लेकिन अब मैने और कूछ दिवारो को उभरते हुए देखा है । 

हां साहब मैने परिवार को तुटते हुए देखा है  ।


बच्चे थे तो सब अच्छा था , घर भी तब कुछ अपनासा था !

बस छुटते बचपन और तुटते घर को , रोक न पायां था  !

वक्त कि दोर को मैने बस फिसलते मेहसूस किया है !

हां साहब मैने परिवार तुटते हुए देखा है ।  


जिंदगी के किसी पढाव पे ,जब देखूनगा मै पिछे मुडके,

कूछ पल जरूर याद आयेंगे !

कभी कभी  हम बोल न पाये,  तो कई बार हम सून नही पाये !

डुबते सुरज को भी हमने नमन करना सिखा है 

हां साहब मैने परिवार तुटते हुए देखा है .. मैने तुटते हुए देखा है ।

बचपन

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