रीश्तो कि सीलवटो को मैने युन हि मिटते देखा है
हां साहब मैने परिवार को तुटते हुए देखा है
कुछ सपनो को बिखरते हुए देखा है ।
कुछ अपनो को रुठते हुए देखा है ।
हां साहब मैने परिवार तुटते हुए देखा है ।
कुछ बडे ख्वाब तो नाही थे , एक छत चार दिवारी ।
और कूछ बातें प्यारी ।
लेकिन अब मैने और कूछ दिवारो को उभरते हुए देखा है ।
हां साहब मैने परिवार को तुटते हुए देखा है ।
बच्चे थे तो सब अच्छा था , घर भी तब कुछ अपनासा था !
बस छुटते बचपन और तुटते घर को , रोक न पायां था !
वक्त कि दोर को मैने बस फिसलते मेहसूस किया है !
हां साहब मैने परिवार तुटते हुए देखा है ।
जिंदगी के किसी पढाव पे ,जब देखूनगा मै पिछे मुडके,
कूछ पल जरूर याद आयेंगे !
कभी कभी हम बोल न पाये, तो कई बार हम सून नही पाये !
डुबते सुरज को भी हमने नमन करना सिखा है
हां साहब मैने परिवार तुटते हुए देखा है .. मैने तुटते हुए देखा है ।